प्रथम गणपतिजी
के
गुणगाना प्रथम
गणपतिजी
के
गुणगाना
।
प्रेम भाव
से
सेवा
करना
तज
के
अभिमान
॥
टेर
॥
अड़सठ तीरथ
न्यारा
न्यारा,
गंगा
जल
ल्याना
।
चतुराई की
चौकी
बैठ
कर,
करते
असनाना
॥
1 ॥
सूंड सुंडाला,
दूंद
दूंदाला
और
सोहे
काना
।
मुख मँ
तो
एक
दन्त
बिराजै,
खूब
सजै
बाना
॥
2 ॥
पारवती के
पुत्र
कहावो,
शिव
के
मन
माना
।
सब देवन
मँ
देव
बड़े
हो,
पूजै
अगवाना
॥
3 ॥
सब मुनियन
को
शीश
झुकाऊँ,
दीज्यो
बुध
ज्ञान
।
भुल्या अक्षर
मोय
बताओ,
नहीं
तुमसे
छाना
॥
4 ॥
नाथ गुलाब
मिल्या
गुरु
पूरा,
भगवाँ
है
बाना।
भानीनाथ शरण सतगुरु की, सभा बीच आना ॥ 5 ॥
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