बुन्गला देखी
थारी अजब
बहार, ज्या
में निराकार
दीदार |
काया बुन्गला में पातर नाचे, देख रह्यो संसार |
किताक पगड़ी ले चल्या रे, कई गया जमारो हार || १ ||
काया बंगले में बिणजी बिणजे, बिणजे जिनसे अपार |
हरिजन हो सो हीरा बिणजे, पात्थर या संसार || २ ||
काया बंगले में दौड़ा दौड़े, दौड़ रह्या दिनरात |
पांच पच्चीस मिल्या पाखरिया, लूट लियो बाज़ार || ३ ||
काय बंगले में तपसी तापे, अधर सिंहासन ढाल |
हाड मांस से न्यारो खेले, खेले खेल अपार || ४ ||
काया बुन्गले में चोपड़ मांडी, खेले खेलण हार |
अबके बाजी मंडी चोवठे, जीत चलो चाहे हार || ५ ||
नाथ गुलाब मिल्या गुरु पूरा, जड़ पाया दीदार |
भानिनाथ शरण सतगुरु की, हर भज उतारो पार || ६ |
काया बुन्गला में पातर नाचे, देख रह्यो संसार |
किताक पगड़ी ले चल्या रे, कई गया जमारो हार || १ ||
काया बंगले में बिणजी बिणजे, बिणजे जिनसे अपार |
हरिजन हो सो हीरा बिणजे, पात्थर या संसार || २ ||
काया बंगले में दौड़ा दौड़े, दौड़ रह्या दिनरात |
पांच पच्चीस मिल्या पाखरिया, लूट लियो बाज़ार || ३ ||
काय बंगले में तपसी तापे, अधर सिंहासन ढाल |
हाड मांस से न्यारो खेले, खेले खेल अपार || ४ ||
काया बुन्गले में चोपड़ मांडी, खेले खेलण हार |
अबके बाजी मंडी चोवठे, जीत चलो चाहे हार || ५ ||
नाथ गुलाब मिल्या गुरु पूरा, जड़ पाया दीदार |
भानिनाथ शरण सतगुरु की, हर भज उतारो पार || ६ |
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