जितना जिसके
लिखा भाग्य,
में वो
उतना ही
पाता
मेरे दाता के दरबार में, मेरे मालिक के दरबार में, है सबका खाता
जितना जिसके लिखा भाग्य, में वो उतना ही पाता- पाता ||
क्या साधू क्या संत गृहस्थी, क्या राजा क्या राणी |
प्रभु की पुस्तक में लिखी है, सबकी करम कहानी |
वो ही सभी के जमाखर्च का, सही हिसाब लगाता || मेरे मालिक के ||
बड़ी कड़ी क़ानून प्रभु की, बड़ी कड़ी मर्यादा |
किसी को कोडी कम ना देता, किसी को दमड़ी ज्यादा |
इसीलिए तो इस दुनिया का, नगर सेठ कहलाता-२ || मेरे मालिक के ||
करते है इन्साफ फैसले, प्रभु आसन पे डटके |
उनका फैसला कभी न बदले, लाख कोई सर पटके |
समझदार तो चुप रहता है, मूरख शोर मचाता-२ || मेरे मालिक के ||
आच्छी करनी करो कपूरचंद, करम ना करिये काला |
हजार आँख से देख रहा है, तुझे देखने वाला |
सूरदास जी यु कहते है, समय गुजरता जाता -२ || मेरे मालिक के |
मेरे दाता के दरबार में, मेरे मालिक के दरबार में, है सबका खाता
जितना जिसके लिखा भाग्य, में वो उतना ही पाता- पाता ||
क्या साधू क्या संत गृहस्थी, क्या राजा क्या राणी |
प्रभु की पुस्तक में लिखी है, सबकी करम कहानी |
वो ही सभी के जमाखर्च का, सही हिसाब लगाता || मेरे मालिक के ||
बड़ी कड़ी क़ानून प्रभु की, बड़ी कड़ी मर्यादा |
किसी को कोडी कम ना देता, किसी को दमड़ी ज्यादा |
इसीलिए तो इस दुनिया का, नगर सेठ कहलाता-२ || मेरे मालिक के ||
करते है इन्साफ फैसले, प्रभु आसन पे डटके |
उनका फैसला कभी न बदले, लाख कोई सर पटके |
समझदार तो चुप रहता है, मूरख शोर मचाता-२ || मेरे मालिक के ||
आच्छी करनी करो कपूरचंद, करम ना करिये काला |
हजार आँख से देख रहा है, तुझे देखने वाला |
सूरदास जी यु कहते है, समय गुजरता जाता -२ || मेरे मालिक के |
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