बिना जीव की कामनी कै हुया अचानक लड़का।
जब लड़के का जन्म हुया ये तीन लोक थर्राए।
ब्रह्मा विष्णु शिवजी तीनू दर्शन करने आये।
सप्त ऋषि भी आसन ठा कै हवन करण नै आये।
साध सती और मन मोहनी नै आके मंगल गाये।
जब नाम सूना था उस लड़के का हुया काल मुनि कै धड़का।
बिना जीव की कामनी कै हुया अचानक लड़का।
साठ समन्दर उस लड़के नै दो टैम नहवाया करते।
अगन देवता बण्या रसोई, भोग लगाया करते।
इंद्र देवता लोटा ले कै चल्लू कराया करते।
पवन देवता पवन चला लड़के ने सूवाया करते।
जब लड़के नै भूख लगी वो पेड़ निगल गया बड़ का।
बिना जीव की कामनी कै हुया अचानक लड़का।
कामदेव पहरे पै रहता चारों युग के साथी।
अस्ट वसु और ग्यारा रूद्र ये लड़के के नाती।
बावन कल्वे छप्पन भैरो गावें गीत परभाती।
उस के दरवाजे के ऊपर बेमाता साज बजाती।
गाना गावे साज बजावे करै प्रेम का छिड़का।
बिना जीव की कामनी कै हुया अचानक लड़का।
सब लड़कों मै उस लड़के का आदर मान निराला।
गंगा यमुना अडसठ तीरथ रटे प्रेम की माला।
चाँद सूरज और तारे तक भी दे रहे थे उज्याला।
वेद धरम की बात सुणावै लखमीचंद जांटी आळा।
उस नै कवी मै मानूं जो भेद खोल दे जड़ का।
बिना जीव की कामनी कै हुया अचानक लड़का।
देवसेना युवाओं का संगठन है,जो श्री बालाजी मंदिर,गुर्जरो की ढाणी, रतनगढ़(राजस्थान) के विकास और पुनरुद्धार के लिए समर्पित है। सदस्यो द्वारा हर शनिवार को बालाजी मंदिर में भजन संध्या का आयोजन किया जाता है। देवसेना संगठन के इस यू ट्यूब चैनल पर शनिवार की हर भजन संध्या के वीडियो,देवसेना द्वारा आयोजित संगीतमय सुन्दरकाण्ड और नाथ समुदाय सभी साधू संतो के भजन पोस्ट किए जाएंगे | For Subscribe https://www.youtube.com/c/devsena
गुरुवार, 28 मई 2020
आधी रात सिखर तैं ढलगी हुया पहर का तड़का
आधी रात सिखर तैं ढलगी हुया पहर का तड़का
आधी रात सिखर तैं ढलगी हुया पहर का तड़का।
सोमवार, 25 मई 2020
गुरु बिन घोर अंधेरा
जेसे मांहदर दीपक हबन सुना ना वस्तु का बेरा
गुरु बिन घोर अंधेरा
जब तक कन्या रहे काँवारी ना लप्रयतम का बेरा
अठुं पहर रहे अलस म खेल्ह खेल घणेरा
चकमक म ऄग्नी बसत है ना चकमक न बेरा
गुरु घम चोट लगे चकमक के अग लफरे चोफेरा
लमरगे के नाभ बसे लकस्तुरी ना लमरगे न बेरा
व्याकुल होकर लफरे भटकतो सूंघे घास घनेरा
नाथ गुलाब लमल्या गुरु पुरा जाग्या भाग भलेरा
भानीनाथ शरण सतगुरु की गुरु चरणा लचत्त मेरा
बोल भालननाथ जी महाराज की जय
गुरु बिन घोर अंधेरा
जब तक कन्या रहे काँवारी ना लप्रयतम का बेरा
अठुं पहर रहे अलस म खेल्ह खेल घणेरा
चकमक म ऄग्नी बसत है ना चकमक न बेरा
गुरु घम चोट लगे चकमक के अग लफरे चोफेरा
लमरगे के नाभ बसे लकस्तुरी ना लमरगे न बेरा
व्याकुल होकर लफरे भटकतो सूंघे घास घनेरा
नाथ गुलाब लमल्या गुरु पुरा जाग्या भाग भलेरा
भानीनाथ शरण सतगुरु की गुरु चरणा लचत्त मेरा
बोल भालननाथ जी महाराज की जय
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भाँगडली शरणाई रे शिव थारा नैणा में, अर्जी सुन्ज्यो दीनानाथ, थे तो भूता रा सरदार तेरी महिमा अपरम्पार धतूरो बोयो वन मे भांगडली गरनाई रे शिव ...
