प्रभाती: देखो उलटी रीत जगत की
देखो उलटी रीत जगत की, पीवै जहर अमी त्यागे |
सुख मारग में कोई कोई चाले, दुःख मारग में स भागे || टेर ||
खीर खांड का भोजन त्यागे, दारू की बोतल मांगे |
कर्महीन क लिख्या कांकरा, मुर्दा की हाड्या चाबे || १ ||
धर्मकथा पर पीसो कोनी चोढ़े, कू रस्ता सौ सौ आगे |
रांड भांड में घर फुन्क्यावे, घर बिना बाधा सागे || २ ||
हिन्दू होली तुरक ताजिया, बे नाचे बे राह गाजे |
इतना प्रेम करे मालिक का, जम का सोटा ना लागे || ३ ||
एक मारगियो बगे देहनो, दूजो बगे उनके डाबो |
दोन्या के बीच मुक्ति को गेलो, रामजीलाल वहा जाबो || ४ ||
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