मनमोहन प्यारे आज्यो मेड़तणी रे देश
सावन अवण कह गयो रे कर गयो कोल ऄनेक
लगनता लगनता घस गइ,म्हारे अंगललया री रेख
सााँवरे नै ढुाँढण में गइ रे कर जोगण का भेष
ढूाँढत ढूाँढत जुग भया रे,मेरा धोळा होगया केश
कागज ना स्याही नही रे ना कोइ कलम दवात
पंछी को परवेश नही लकस लवलध ललखूं सन्देश
मौर मुकुट कटी काछणी रे घूंघर वाला केश
मीरां न लगरधर लमल्यो रे धर नटवर को भेष
बोल मीरां के श्याम की जय
सावन अवण कह गयो रे कर गयो कोल ऄनेक
लगनता लगनता घस गइ,म्हारे अंगललया री रेख
सााँवरे नै ढुाँढण में गइ रे कर जोगण का भेष
ढूाँढत ढूाँढत जुग भया रे,मेरा धोळा होगया केश
कागज ना स्याही नही रे ना कोइ कलम दवात
पंछी को परवेश नही लकस लवलध ललखूं सन्देश
मौर मुकुट कटी काछणी रे घूंघर वाला केश
मीरां न लगरधर लमल्यो रे धर नटवर को भेष
बोल मीरां के श्याम की जय
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