एक डोर लग ज्याउला गुराजी थारे, शरणा पड्या रहूँगा|
पत्थर न पुजूं, पत्ता न पुजूं, ना कोई देव मनाउंगा|
पात- पात म बसे थारी मूरत, उसके आगे झूक जाउंगा|
एक डोर..........।।1।।
गंगा न जाऊँ, यमुना न जाऊँ, ना कोई तीरथ नाऊंगा|
अड्सठ तीरथ, घट ही म गंगा, उससे भर भर नाऊंगा|
एक डोर........।।2।।
औषद् ना पिऊं, बूटी ना पिऊं, ना कोई करष बताऊंगा|
जद दिखे म्हारा, सत्तगुरू सायब, उसको नबज दिखाऊंगा|
एक डोर...........।।3।।
सब रस छोड, एक रस ताकूं, सत्त अमरापुर जाउंगा|
सरण मछन्दर जति गोरख बोल्या, ब्रम्ह घोट गिट जाऊंगा|
एक डोर......।।4।।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें