गुरुवार, 7 नवंबर 2019

मैं हरि, पतित पावन सुने

मैं हरि, पतित पावन सुने।
मैं पतित, तुम पतित-पावन, दोउ बानक बने॥
ब्याध गनिक अगज अजामिल, साखि निगमनि भने।
और अधम अनेक तारे, जात कापै गने॥
जानि नाम अजानि लीन्हें नरक जमपुर मने।
दास तुलसी सरन आयो राखिये अपने॥

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

BHAJAN

 <input class="button hide" name="commit" type="submit" ""="" value="Add to cart...